Saturday, July 19, 2025

उपकार

 उपकार

         
                    photo credit @ Roop Singh 

उपकार


उपकार न समझ , मेरे मालिक तू इसे....
जो ये , तू  मुझपे किये जाता है. ....

क्या जाने ?
मैं तुझे इसका मोल कभी चुकादूं  ....!!
या जाने, तू ही श्रण किसी पूर्व जन्म  का चुकाए जाता है. ..!!

चाहे जो भी हो....

पर मुझे तो उपकार का पर्याय श्रण ही लगता है. ..

या इसे, एक मीठा एहंकार भी कह सकते हें क्या ?

तुम ही विचार करके बताना मुझे...
मेरे मालिक...!!

क्या उपकार शब्द , उपयोग के लिए ठीक है. ....!!

(c)  @ Roop Singh 21/10/2023


      

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लेखक


लेखक



के यूं भी, मैं एक लेखक हुआ....
बहोत कुछ सुना और  पढ़ा. ...

पर पाया ! कोई भी शब्द, मेरी पीड़ा...?
मेरा आपा

नहीं ! बयां कर पा रहे हैं . .....

तब मैंने खुद ही, अपनी कहानी...!
अपनी जुबानी....!!
जो, लिखने का फैसला किया


और ! जो,  लिखना  शुरु किया...
तब! ना जाने कब मैं लेखक हो गया....

बस लिखते लिखते....
 
(c) @ Roop Singh 19/07/2025



Wednesday, July 9, 2025

पृथ्वी मेरी माँ

पृथ्वी मेरी माँ 

                    Photo credit @ Roop Singh 


पृथ्वी मेरी माँ 


ओ! मेरी पृथ्वी,  मेरी माँ ...!
तेरे गर्भ से जनमा, ये संसार ...!!
संपूर्ण वनस्पति, संसाधन हजार...!!
भला! होगा कौन अभागा, जिसे ना हो तुझसे प्यार...!!

कण - कण है तेरा जैसे माणिक..!
अमृत की तुझमे बहती, धाराएं कल कल..!
देखो !अम्बर भी तारों संग तुझ्से गौरान्वित..!!
गृह नक्षत्र ओर भानू, तुझपे नैन धरे हे पल पल !!

तेरे परबतों की चोटियां,  आकाश को छू जाती है! 
दुर्बलो को जैसे , साहस से जीना सिखलाती है  !!

समंदर की लेहरों में उठता है,  कैसा माधुर संगीत...!
के,  सुगंधित पवन तो जैसे होई जाये मूर्छित. ..!!

पाख पाखेरु तुझसे हर्षित ।
जीव जंतु सब तुझसे ही पोषित...!!

मानव जाति का तुमसे है कल्याण !
भला होगा कौन अभागा,  जो धरे ना तेरा ध्यान !!

ओ मेरी पृथ्वी मेरी माँ 
तेरी जय हो, जय हो,  जय हो 

(c) @ Roop Singh 22/04/2017


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