Thursday, August 7, 2025

निहारिका

 निहारिका 

                    photo credit @ Roop Singh 

        निहारिका


         ज्येष्ठ माह की एक साधारण सी दोपहर थी वह | गौशाला के लिए, कम ऊंचाई वाली भीत की चिनाई का काम चल रहा था | मैं ईंट दर ईंट लगाकर भीत की चिनाई कर रहा था और मेरी सहायिका 'मधु' मुझे ईंट और गारा थमा रही थी| हुआ यूं कि मधु को बीच में ही काम छोड़कर अपने घर जाना पड़ा| उसका बच्चा बीमार था इस कारण | सो, सरपंच ने एक दूसरी सहायिका का प्रबंध मेरे लिए  करा दिया| जो कि उनके घर पर ही काम कर रही थी और तब तक मैं दोपहर का भोजन कर चुका था |
   
               कुछ एक क्षण में ही मेरी नई सहायिका ने अपने चेहरे से घूंघट हटा दिया | उसकी यह सहजता देखकर मैं चौंक गया | वह भी यही चाहती थी, के मैं उसका चेहरा देखूं| जबकि मैं उसे पहचानता भी नहीं था|
   
             लेकिन वह मुझे पहचान गई थी|
बात कुछ उसने यूं छेड़ी |

      पहले पहल वह चुटकी लेते हुए ,मुझसे पूछने लगी "बताओ तुम्हारी आयु क्या है" ? जैसे, नाम तो वह  मेरा जानती ही थी !
     
    मैंने भी मजाकिया  अंदाज में कह दिया " बस तुम्हारे समकक्ष ही  होगी"| और इस तरह मैंने सवाल उल्टा दाग दिया, " तुम ही  बताओ तुम्हारी आयु क्या है" ?
  
        वह  थोड़ा सकपकाई और  सम्मोहक मुख बनाकर बोली " जब तुमने समकक्ष बोल ही दिया है तो अब आयु बताने का तात्पर्य भी क्या" | और वह हल्का मुस्कुराई भी| तब मैंने देखा, धूप की चमक उसकी नथुनी के नग पर पड़ रही है, जो रह रह कर मेरी आंखों से टकरा रही है | ये बड़ी खूबसूरत सी बात, मेरी दिलचस्पी को बढ़ाने  लगी|और अब ! मेरे मन में एक प्रसन्नता की लहर दौड़ी,  जाने कैसी लहर पर हां दौड़ी ! एक प्रसन्नता की लहर |

       मैंने कहा, " चलो छोड़ो बातें करना, काम पर ध्यान दो नहीं तो सरपंच जी क्रोधित होंगे,  बातें ना करो काम  करो " |

           वह बोली, " जाने कैसे ! आज तुमसे मिलना हुआ है, अब काम नहीं करना | बातें करनी है, बस ! " क्या तुम्हें पता है हम पहले भी मिले हैं" ? 

          मैं चौंक गया "क्या हम पहले कभी मिले हैं" ?

    अब मैंने  उसको फिर से देखा और गौर से देखा , उसकी भवें,  उसका नयन-नक्श, उसकी आंखें, उसकी ठोढी , गर्दन , कद काठी, रूप-रंग  पर ! पहचान नहीं पाया ? 

         एक बार फिर से आँखे बंद कर के अपनी ,विगत स्मृतियों मैं झाँककर देखा | पर उसका चेहरा ! नहीं पहचान  पाया ?  पर हां ! लग ये रहा था, के वह सच बोल रही है | के हम पहले कभी मिले हें |

         मैंने कहा, " हम तो पहले कभी भी नहीं मिले और मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा" |

       अब उसकी आंखें नम हो चली थी और उदास स्वर में उसने कहा "याद करो पंद्रह एक बरस पहले की बात है,  जब तुम एक विवाह समारोह में गए थे | तुमने अपने गायन के लिए बहुत तालियाँ  बटोरी  थी| तब एक सज्जन (मेरे पिता) ने अपनी बेटी के विवाह के लिए, तुम्हारे सामने प्रस्ताव रखा और तब एक औपचारिक मुलाकात में हम एक दूसरे को मिले थे | क्या तुम्हें याद है "?

        तब मेरे माथे में एक बिजली कौंधी और मैंने ईंट और वसूली एक तरफ रख दी | उसकी आंखों में गहराई से देखा, अब में उसे पहचान गया था ।

        हां ! यह वही तो है सचमुच, वही जिसके लिए मैंने विवाह न करने का फैसला किया था | जिसके लिए बरसों से एकाकी जीवन जी रहा हूं, मैं |वही जो मेरे सपनो और कल्पनाओं में डोलती रही है  अप्सरा जैसी | अब तक इसी एक चाह को तो मैं ढोता आया हूं , के तुम मुझे  मिल जाओगी कभी |

            पर क्या पता था, सरकते हुए जीवन में इतने अरसे बाद ! तुम इस तरह मिलोगी ?

 खैर !

        मुझसे रहा ना गया और मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, मैंने कहा, "हां, अब मैं तुम्हें पहचान गया हूं "|

         वह बहोत खुश हुई और कहने लगी, " मैंने ढेरों सपने देखे तुम्हारे लिए और हमारे साथ के लिए "|

         मैं और उतावला हो चला था, अब मैं उसे गले लगाना चाहता था, उसे विहाना चाहता था |मैंने जैसे ही  उसे अपनी ओर  खींचने की चाह स्पष्ट कि , उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया |

          कहने लगी " अब सब व्यर्थ है , मैं अब एक व्याहता स्त्री हूं "|

     मैंने अपने कोरे हाथ को देखा और फिर उसकी आंखों में  देखा | मुझे उसकी आंखों में बहुत से सूखे पेड़ नजर आए | जो अब सूख चुके थे | पूरी तरह !

        कुछ एक क्षण में ही मैंने उस बरसों के एकांत को महसूस किया, जो मैं जी कर आया हूं | सांस उठी और दबी |

         उसने और मैंने,  मौन अवस्था में एक दूसरे को गहराई तक निहारा, पर कुछ भी  समझ न आया ?  ना भूत ना भविष्य

          फिर मैंने पूछा " अच्छा तो बस यही  बताओ , तुम्हारा नाम क्या है और तुम कहां से आई हो ?

बहुत संक्षेप में वह बोली 

 "निहारिका" ......" रगुंआ वास" से

और वह रोती हुई लौट गई |

(c)  @ Roop Singh 04/11/2024




Saturday, July 19, 2025

उपकार

 उपकार

         
                    photo credit @ Roop Singh 

उपकार


उपकार न समझ , मेरे मालिक तू इसे....
जो ये , तू  मुझपे किये जाता है. ....

क्या जाने ?
मैं तुझे इसका मोल कभी चुकादूं  ....!!
या जाने, तू ही श्रण किसी पूर्व जन्म  का चुकाए जाता है. ..!!

चाहे जो भी हो....

पर मुझे तो उपकार का पर्याय श्रण ही लगता है. ..

या इसे, एक मीठा एहंकार भी कह सकते हें क्या ?

तुम ही विचार करके बताना मुझे...
मेरे मालिक...!!

क्या उपकार शब्द , उपयोग के लिए ठीक है. ....!!

(c)  @ Roop Singh 21/10/2023


      

                 photo credit @ Roop Singh 
                       (window in clouds) 

                                     full pic 


लेखक


लेखक



के यूं भी, मैं एक लेखक हुआ....
बहोत कुछ सुना और  पढ़ा. ...

पर पाया ! कोई भी शब्द, मेरी पीड़ा...?
मेरा आपा

नहीं ! बयां कर पा रहे हैं . .....

तब मैंने खुद ही, अपनी कहानी...!
अपनी जुबानी....!!
जो, लिखने का फैसला किया


और ! जो,  लिखना  शुरु किया...
तब! ना जाने कब मैं लेखक हो गया....

बस लिखते लिखते....
 
(c) @ Roop Singh 19/07/2025



Wednesday, July 9, 2025

पृथ्वी मेरी माँ

पृथ्वी मेरी माँ 

                    Photo credit @ Roop Singh 


पृथ्वी मेरी माँ 


ओ! मेरी पृथ्वी,  मेरी माँ ...!
तेरे गर्भ से जनमा, ये संसार ...!!
संपूर्ण वनस्पति, संसाधन हजार...!!
भला! होगा कौन अभागा, जिसे ना हो तुझसे प्यार...!!

कण - कण है तेरा जैसे माणिक..!
अमृत की तुझमे बहती, धाराएं कल कल..!
देखो !अम्बर भी तारों संग तुझ्से गौरान्वित..!!
गृह नक्षत्र ओर भानू, तुझपे नैन धरे हे पल पल !!

तेरे परबतों की चोटियां,  आकाश को छू जाती है! 
दुर्बलो को जैसे , साहस से जीना सिखलाती है  !!

समंदर की लेहरों में उठता है,  कैसा माधुर संगीत...!
के,  सुगंधित पवन तो जैसे होई जाये मूर्छित. ..!!

पाख पाखेरु तुझसे हर्षित ।
जीव जंतु सब तुझसे ही पोषित...!!

मानव जाति का तुमसे है कल्याण !
भला होगा कौन अभागा,  जो धरे ना तेरा ध्यान !!

ओ मेरी पृथ्वी मेरी माँ 
तेरी जय हो, जय हो,  जय हो 

(c) @ Roop Singh 22/04/2017


                  Photo credit @ Roop Singh 

Tuesday, February 25, 2025

शिवरात्रि

 शिवरात्रि

                   Photo credit @ Roop Singh 

शिवरात्रि


कांपे धरा, कराहे अम्बर…
करे दानव–देव शिवा शिवा…
उफान समंदर को छूए हिमालय…
मानव–जनावर करे शिवा शिवा…
ब्रह्मा–विष्णु भजे तोहुकु…
नारद–सारद करे शिवा शिवा…

तेरे क्रोध के आगे काल न ठहरे..
धरदो त्रिशूल, महाकाल शिवा….!

नंदी-संदी सब पांव में लोटे…
अरज कर रही गौरा माँ…
गणेश–कार्तिकेयन हाथ जोड़ खड़े हें…
विनत कर रही चहुं दिशा…

शिवा शिवा – शिवा शिवा…
गुरुजन की तो मानो हे नाथ शिवा…
धरदो त्रिशूल शिवरात्रि को ओसर् हे..

करने दो वंदना डूब के धुन में…
शिवा शिवा – शिवा शिवा…..

©@ Roop Singh  07/03/16

हर हर शम्भू ...🙏


कृष्ण

अनंत सारथी माधव गोपाल तू ........!
ओमकार अपार केशव् नन्दलाल तू .!!
अमृत कृष्णा श्रीवत्स कौस्तुभधराय..!
गोविंद ऋषिकेश, दयानिधि दयाल तू !!

(c)  @ Roop Singh 14/03/25

 जय श्री कृष्ण ......🙏

Tuesday, January 7, 2025

पीड़ा

 पीड़ा

                     Photo credit @ Roop Singh 

पीड़ा 


हृदय टूट टूट कर गिरता है...
बड़े सलिखे से...
जैसे गिरता है झरना ...
कभी कभी तो बहुत उँचे से भी...

तब पीड़ा तो बहुत उठती है...
क्या कहते हो ? बहुत उठती होगी ना !...
और उठता है, एक सुर संगीत का भी...
साथ ही साथ....

मधुर ! पर पीड़ा दायक!
जो चीरता है, छाती को....!!
दबे स्वर में. ..!!

वेदना का गुबार..
उठता है दबता है, फिर उठ जाता है...
कंठ भर आता है, गाड़े शहद सा...
नैनो में उमड़ता है सागर ...

और मुख पर देखो ! 
तब भी खिली रहती है एक हंसी...
जो ख़ुशी ख़ुशी विदा लेना चाहती है...
अब भी...!!
इस गहरी उदास कर देने वाली पीड़ा से....!! 

(c) @ Roop Singh 25/03/21


Photo credit @ Roop Singh 

रात


रात हमेशा कोई कहानी सुनाती है. ..!
कभी उदासी तो कभी उल्लास की और जाने क्या क्या...!!
सो भी गये तो क्या, वो सपनो में सुनाएगी कोई कहानी जरूर...!
ये उसकी फितरत है, रात जरूर कोई कोई कहानी सुनाती है....!!

(c) @ Roop Singh  14/12/23

                                    रात

कोई एक खिड़की है...!
जो केवल रात में खुलती है. ......!

जिंदगी से इतर , दुनिया से परे......!!

(c) @ Roop Singh 19/072025